Tuesday, November 10, 2009

लाल स्कार्फ



















इस
साल नवम्बर में सरदी
जब पहाड़ को पार कर
घर के आँगन तक पहुँचेगी
चाय के लिए तुलसी के पत्ते लेने
मैं बाहर आया करुँगी
तब आना तुम खिड़की पे
देखूं, कैसा दिखता है
लाल स्कार्फ तुम्हारे गले में.

मैंने जब उसे बुना था,
मां दहकते लाल उपलों पर
सेक रही थी
मकई की मोटी रोटियां,
आंच से आती रोशनी में
वह मुझे खुश
दिखाई दिया करती थी,
उसके माथे के नूर से मिल कर
भीतर और बाहर की आग
हो जाया करती थी एकमेव.

तुम खिड़की पे आना...
नए मौसम की सरदी बन कर,
कि
तुम जब लाल स्कार्फ नहीं पहनते
लगता है माँ भी मेरे पास नहीं होती।