Sunday, May 3, 2009

कुछ नोट्स जिन्हें कविता कहा जा सकता है.




एक :
व्यवस्था के साथ
चली आती हैं विडम्बनाएँ
जैसे तुम्हारे साथ
निर्लजता ।

दो:
बाढ़ की त्रासदी के साथ
बह कर आती है नई मिट्टी
जैसे तुमपे रो लेने के बाद
देखती हूँ , दुनिया और भी है ।

तीन:
कई बार भेड़ें
स्वयं कटने को होती है प्रस्तुत
जैसे तुम्हारा फोन
उठा लेती हूँ कभी-कभी ।

चार:
ज्यादातर घटनाएँ
इतिहास में नहीं की जाती दर्ज
जैसे कालजयी है
नारी का रुदन।

पाँच:
सब नपुंसक
लिंग के कारण नहीं होते
जैसे कुछ पैदा होते हैं
अवीर्य आत्मा के साथ।


.

23 comments:

  1. bahut hi kaam ke notes hain aur bahut hi gahre bhi.

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  2. आपने पाँच शब्द-चित्र प्रस्तुत किये हैं।
    सब एक से बढ़कर एक हैं।
    बधायी।

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  3. कवितायेँ छोटी ज़रूर है पर हर कविता तेवर में तीक्ष्ण और अर्थ में गहरी है. सबमे एक सामान अन्तर्निहित सूत्र स्त्री विमर्श का है पर बिलकुल नयी भाषा और मुहावरे को प्रस्तुत करती है कवितायेँ.
    "ज्यादातर घटनाएँ
    इतिहास में नहीं की जाती दर्ज
    जैसे कालजयी है
    नारी का रुदन।"
    और.........
    "सब नपुंसक
    लिंग के कारण नहीं होते
    जैसे कुछ पैदा होते हैं
    अवीर्य आत्मा के साथ।"
    कविताओं में अपने अस्तित्व को लेकर सजगता की गहरी भावना है.

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  4. सुमन जी के नाम से सज्जन ने टिपण्णी की थी वो मैंने हटा दी है क्योंकि मेरी रचनाओं पर टिप्पणियां स्वीकार हैं विज्ञापन नहीं.
    वंदना जी, शास्त्री जी आपका बहुत आभार और संजय जी आपने सुन्दर समीक्षा की है इससे मेरी इन पंक्तियों को नया सम्बल मिला.

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  5. bahut khoob ! shayad thode likhe ko jyaadaa samajhna ise hi kahte hain !!!

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  6. नोट्स बेहतरीन हैं

    ज्यादातर घटनाएँ
    इतिहास में नहीं की जाती दर्ज
    जैसे कालजयी है
    नारी का रुदन।

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  7. kaya bat hai jeevan ki gahrai ko bahut hi achhe tarike se pesh kiya hai
    "सब नपुंसक
    लिंग के कारण नहीं होते
    जैसे कुछ पैदा होते हैं
    अवीर्य आत्मा के साथ।"
    is awesome.

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  8. चार:
    ज्यादातर घटनाएँ
    इतिहास में नहीं की जाती दर्ज
    जैसे कालजयी है
    नारी का रुदन।

    कितनी गहरी अर्थपूर्ण बात कह दी आपने ..और कितनी सहजता से..

    पदचिन्हों का आभार !!

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  9. कितनी गहरी अर्थपूर्ण बात कह दी आपने ..और कितनी सहजता से..

    रचना बहुत अच्छी लगी।
    आप का ब्लाग भी बहुत अच्छा लगा।

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  10. "बाढ़ की त्रासदी के साथ
    बह कर आती है नई मिट्टी
    जैसे तुमपे रो लेने के बाद
    देखती हूँ , दुनिया और भी है ।"


    राजकुमारी जी,

    मैंने इस तरह की पंक्तियाँ नहीं सुनी थी पहले कभी..

    बहुत ही सुन्दर..

    ~जयंत

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  11. "पाँच:
    सब नपुंसक
    लिंग के कारण नहीं होते
    जैसे कुछ पैदा होते हैं
    अवीर्य आत्मा के साथ।"

    Toooo good. I am speechless.
    I guess I had posted my previous comment (because Kavitaa was so good) before finishing your post.

    Aapne bahut sundar likhaa hai..

    ~Jayant

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  12. चार:
    ज्यादातर घटनाएँ
    इतिहास में नहीं की जाती दर्ज
    जैसे कालजयी है
    नारी का रुदन।

    कितनी गहरायी हैं इन शब्दों में। हमें आपका ब्लाग बहुत पसन्द आया। बहुत अछा लिखती है आप। आपको बधाई।

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  13. हेरान हुं! कम शब्द...गहरे अर्थ...घातक वार...पाँचों लाजवाब!

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  14. बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति .

    आत्मा की निर्विर्यता से मुक्त हुये बिना इसे समझा भी नहीन जा सकता .
    बधायी !

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  15. श्रेष्ठ साहित्य लेखन और ब्लाॅग लेखन के बीच की दूरियों को खत्म कर रही है आप! अभी तक अगर ब्लाग लेखन साहित्यिक मापदण्डों पर नही तोला जाता था लेकिन शायद इस प्रकार के प्रयासों से ये भ्रम जाता रहें।

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  16. लगता है.....कुछ देर से आने में मैंने मिस कर दिया....दरअसल यही कविता है ....जो अपना प्रतिरोध दर्ज करती है बिना शोर मचाये ...चुपचाप ....
    अद्भुत......कहने का अंदाज ....

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  17. कई बार भेड़ें
    स्वयं कटने को होती है प्रस्तुत
    जैसे तुम्हारा फोन
    उठा लेती हूँ कभी-कभी ।


    बहुत ही सटीक....
    ऐसी व्यंगिकाएं ब्लाग-जगत की उपलब्धि हैं...
    आपकी सृजन-शक्ति को नमन..

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  18. कई बार भेड़ें
    स्वयं कटने को होती है प्रस्तुत
    जैसे तुम्हारा फोन
    उठा लेती हूँ कभी-कभी ।
    wonderful expression..

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  19. Res Rajkumari Ji,

    Please consider this as an invitation to my blog. I have not seen you in a long time and would like to you have your constructive feedback.

    Not trying to use your blog for "prachaar" but wanted to have your suggestions. Please understand that.

    Thanks,
    Jayant

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  20. saty ko khubsurt andaj me pesh kiya hai
    bdhai

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  21. राजकुमारी जी,
    बहुत दिनों से आपके ब्लॉग पर नहीं पहुँच पा रहा था..शायद आपने अपने लिंक के रंग को सफ़ेद कर रखा है..
    आपकी क्षणिकाएं अद्भुत लगी...सरल और कम शब्दों में सहजता से इतनी बड़ी बातें समझा दी है जिन पर निबंध लिखे जासकते थे.इनको कविताओं की आत्मा कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी...सुन्दर लेखन की बधाई ...!
    हालांकि ये शब्द आपकी रचना की प्रशंसा के लिए कम है पर असली प्रशंसा इनको पुनः पुनः पढ़ कर आपके लिखे शब्दों की गहराई को महसूस करना ही है...जो हर पाठक करने को मजबूर हो जाता है.

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  22. i came first time on your blog and i am speechless on your writings .. main kya khahun , nishabd hoon .. mere paas shabd nahi hai ki main aapke lekhan ki tareef karun.. aapke lekhan ko salaam karta hon.

    aapko meri dil se badhai ..

    meri nayi kavita padhkar apna pyar aur aashirwad deve...to khushi hongi....

    vijay
    www.poemsofvijay.blogspot.com

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  23. कई बार भेड़ें
    स्वयं कटने को होती है प्रस्तुत
    जैसे तुम्हारा फोन
    उठा लेती हूँ कभी-कभी ।


    ये तो बिलकुल याद है कि ये कविताएं पढ़ी हैं.... टिप्पणी कैसे छूट गई समझ नही आ रहा....! खैर.. अद्भुत भाव

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