Friday, January 1, 2010

उम्मीदें

मौसम के नए फूल मुबारक हों सबको और समय के ये नए पल भी

पल्लवों की उम्मीदें

हरित
पल्लवों की उम्मीदें
मौसम की गुलाम नहीं होती
जैसे बरगद उगता,
पुराने किले की सबसे उंची
दीवार पर, मेहराब को तोड़ने.

कभी छूट जाया करते हैं
कदमों के निशां
पहाड़ों की सख्त चट्टानों पर,
अरावली और विंध्य वाले
अभी तक करते हैं दावा कि
पांडवों के पदचिह्न बने हुए हैं.

पहाड़ी की उपत्यका में
शांत सजीव खड़े मठ से
आशीर्वाद अब भी बोलते हैं
जबकि
बाबा चंचलनाथ
समाधी लेने के बाद भी
हरिद्वार में दिखे थे
क़स्बे के जोशी परिवार को.

मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ
इन अद्भुत अचरजों के बारे में
कि पैर भले पांडवों के ना हो
कि बाबा से मिलने का धोखा हुआ हो...

मगर उम्मीदें अक्सर
पहाड़ का सीना चीर कर
उगती है नन्हे फूल की तरह.




[ photo courtesy: http://snipd.com/]


18 comments:

  1. मगर उम्मीदें अक्सर
    पहाड़ का सीना चीर कर
    उगती है नन्हे फूल की तरह.
    SHANDAR ABHIVYKTI!

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  2. मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ
    इन अद्भुत अचरजों के बारे में
    कि पैर भले पांडवों के ना हो
    कि बाबा से मिलने का धोखा हुआ हो...

    मगर उम्मीदें अक्सर
    पहाड़ का सीना चीर कर
    उगती है नन्हे फूल की तरह.

    AAMEEN!!!!!

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  3. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  4. ok...to rajkumari ji main to apka blog dhundti rahi...gr8..kavita hmesha ki tarah out of this world.

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  5. tanha raat jab vado ke.....mere bheege galo ki kasam sach kahna ki wo tum the...awesome

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  6. शुक्र है आपने मेल से बता दिया नया यु आर एल वर्ना हम तो आपको खो हो देते!अब बताएं कि हम इतनी सुन्दर अभ्व्यक्तिया कहाँ ढूढ़ते?
    नव वर्ष की शुभकामनाएं!
    प्रकाश पाखी

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  7. शुक्रिया, वर्ना मैं तो चक्कर मे ही पड़ गया था जब आपका ब्लॉग मेरे डैशबोर्ड से अचानक विलुप्त हो गया था..
    हम हर नये साल के आगमन की प्रतीक्षा और स्वागत ऐसी ही उम्मीदों और दुआओं के सथ करते हैं..मगर साल के अलविदा करने पर हमारे हाँथों मे बस उन कुछ आशाओं और ढेर सारी निराशाओं की मिली- जुली स्मृतियों के दस्तावेज बचतें हैं..
    मगर उन निराशाओं और भय को परे रख कर फिर हम अगले साल का स्वागत दोबारा ढेर सारी उम्मीदों और दुआओं से करते हैं...सच, यही तो है जीवन!..जहाँ..
    कभी छूट जाया करते हैं
    कदमों के निशां
    पहाड़ों की सख्त चट्टानों पर,

    हालांकि बाबा चंचलनाथ के बारे मे नही सुना मगर नये साल का यह कवितामय सकारात्मक स्वागत अच्छा लगा..उम्मीद जगाता सा.
    आपको भी नये वर्ष की असीम मंगलकामनाओं सहित शुक्रिया!!

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  8. okay URL change accepted.and please remove word verification.

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  9. Bahut hi sunder ...ek achchha sandesh deti rachna badhai.
    http://ravirajbhar.blogspot.com

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  10. अभी तो इस उहापोह में पड़ी हूँ कि यूआरएल के साथ साथ क्या क्या बदल गया

    ब्लाग शीर्षक ?

    ब्लॉगर का नाम (राजकुमारी से आभा चौधरी)??

    और तो और फोटो ही नही... फोटो की शक्ल भी ???

    जो भी हो आप लिखती हमेशा ही अच्छा हैं।

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  11. लीजिये हम तो अभी तक आपका नाम "राज" समझ रहे थे और शाय्द इसी से जुड़ी एक टिप्पणी भी की थी कभी।

    कविता के साथ जोडी गयी तस्वीर हमेशा इंप्रेसिव होती है आपके पोस्ट पर।

    नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ! इन शब्दों का जादू यूं ही फैलता रहे वर्ष-दर-वर्ष!!

    ब्लौगिंग-जगत के एक बेहद अज़ीज का एक बड़ा ही प्यारा-सा कार्ड मिला था अभी कुछ दिनों पहले जब तनिक चोट लगी थी मुझे। उस कार्ड पर अन्य नामों के साथ एक "आभा" का नाम भी था। सोचता हूँ अपने उन अज़ीज से पूछूँ कि आपसे ही... :-)

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  12. बहुत सुन्दर रचना है।
    शब्दो मे भावनाओं को बहुत सुन्दर समेटा है।

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  13. एक राजकुमारी की आभा देख रही हूँ हरित पल्लवों में... पहाड़ का सीना चीरती उम्मीदों के नन्हे फूलों में ...

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  14. उम्‍मीद पर बेहद सुंदर कहा है.

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  15. "रेतघड़ी" पढ़ पर पहली बार आया, "उम्मीदें" पढना शुरू किया, अच्छा लग रहा था और पढता जा रहा था लेकिन
    "उम्मीदें अक्सर
    पहाड़ का सीना चीर कर
    उगती है नन्हे फूल की तरह"
    इन तीन पंक्तियों ने मुझसे जो कहा उसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं और न होंगे. नव वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ.

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  16. मगर उम्मीदें अक्सर
    पहाड़ का सीना चीर कर
    उगती है नन्हे फूल की तरह

    आपकी कविता की तारीफ के लिए शब्द बौने हो गए मेरे..
    उम्मीदों के पूल खिलते रहे ..और मुस्कुराते रहे..

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  17. उम्मीदों के सिलसिले में आपने यह एक बहुत बेहतरीन रचना लिखी है...

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