तीसरे मोड़ के
जेब्रा क्रोसिंग की
आखिरी उदास पट्टी पर
अब भी चमकता है
एक आंसू काले धब्बे सा,
ये मैंने
हर रोज वहीं जा कर पाया
कि
कुछ भी जाया नहीं होता
मेरे ईश्वर की इस दुनिया में,
जैसे आंसू टूट कर भी
पूरी तरह बिखर नहीं जाता.
मेरे अफसोसों में बस
एक यही सालता है मुझे
कि
धूप में मेरा साया
मिल नहीं पाता तेरे साये से,
और नीम अँधेरी शामों में
इक बिना साये की मुहब्बत
मुझसे मिलने आती थी।
फिर भी दोस्त
अपनी आँखों में
अब भी तुझे छुपा के रखा है
ऐसा नहीं है कि
तेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है.
[तस्वीर सौजन्य : http://www.foundshit.com/tag/shadows/]
गहरी बातें , तबियत ख़राब है पर टिप्पणी किए बिना रुका नहीं जा रहा |
ReplyDeleteबहुत सुंदर , ये कोलतार के निशान याद रखने लायक हैं |
अंधेरी शामों में साये की जरुरत ही नहीं होती , धूप में जब साये की जरुरत होती है तो अफ़सोस , साया नदारद होता है , और बड़ा दम लगता है , क्या फर्क पड़ता है छाया उसे बनना पड़ता है या हमें ,love is always a one way traffic.
फिर भी दोस्त
ReplyDeleteअपनी आँखों में
अब भी तुझे छुपा के रखा है
ऐसा नहीं है कि
तेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है.
बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये लाजवाब अभिव्यक्ति शुभकामनायें
मेरे अफसोसों में बस
ReplyDeleteएक यही सालता है मुझे
कि
धूप में मेरा साया
मिल नहीं पाता तेरे साये से,
और नीम अँधेरी शामों में
इक बिना साये की मुहब्बत
मुझसे मिलने आती थी।
इन पंक्तियों मे मुझे अलग ही बिंब मिले... पता नही आप ने किस भाव में लिखा...मगर मैने जिस समझ से पढ़ा उससे मुग्ध हूँ...! बहुत गहरी और संवेदनशील कविता....!
अपनी आँखों में
ReplyDeleteअब भी तुझे छुपा के रखा है
ऐसा नहीं है कि
तेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है.
बहुत गहरे शब्द ........ प्रेम की उत्कृष्ट अभियक्ति ......... कुछ पल खामोशी छा गयी पढ़ने के बाद ........
ऐसा नहीं है कि
ReplyDeleteतेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है.
wakai mein bhi mugdh hoon aapki rachnasheelta par.
ऐसा नहीं है कि
ReplyDeleteतेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है.
क्या बात है !
यह नवगीत इतना पसन्द आया कि
ReplyDeleteकई बार पढ़ना पड़ा!
कविता तो है ही बेहतरीन साथ ही साथ ये तस्वीर भी बहुत धाँसू है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकवि सच में हर विधान से परे जाता है, उसे अतिक्रमित करता है. मेरे ही कल के गद्य का कवि के पास लगभग विपरीत विकल्प मौजूद है.सच में कविता शाश्वत को रचने का सामर्थ्य रखती है.
ReplyDeleteसंजय जी के कमेन्ट को कविता के बाद पढ़ा तो अचरज हुआ कि उन्होंने कितनी बारीकी से इसे देखा है. सब सुधि लेखकों ने इसे स्नेह दिया है और मुझे भी लगता है कि कविता में कुछ है जो आकर्षित करता है.
ReplyDeleteमेरे अफसोसों में बस
ReplyDeleteएक यही सालता है मुझे
कि
धूप में मेरा साया
मिल नहीं पाता तेरे साये से,
सोचता हूँ के कभी कभी गम भी इतना खूबसूरत क्यों दिखाई देता है सफ्हो पर ?
ऐसा नहीं है कि
ReplyDeleteतेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है..कुछ साए यूँ ही साथ साथ चलते हैं और अपन होने का आभास देते रहते हैं .बहुत बढ़िया लिखा है आपने ..शुक्रिया
अनुभूतियों का सही चित्रण
ReplyDeleteआपकी कुछ पुरानी पोस्ट भी पढ़ी है और कुछेक याद भी है... पहली बार लिख रहा हूँ... अच्छा लिखती हैं... नए ओर ध्यान दिलाती...
ReplyDeleteआज एक लंबे अंतराल के बाद आ रहा हूँ आपको पढ़ने और अब खुद पे क्रोध आ रहा है कि क्यों किया ये विलंब।
ReplyDeleteइस अफसोस की बात...अपने साये से उसके साये के ना मिल पाने का अफसोस और उसे बयां करने का अंदाज...उफ़्फ़्फ़्फ़!
और अचानक से ध्यान चला जाता है साइड -बार पर खुद के लिये लिखी पंक्तियों पर। एक और उफ़्फ़्फ़्फ़!
अरे हाँ, कविता के नीचे की वो अद्भुत तस्वीर...उसके लिये एक और उफ़्फ़्फ़्फ़!
ReplyDeleteLajbab...
ReplyDeletedil ko chhu gae...!
aapki rachna-sheelta
ReplyDeleteapne aap meiN
anoothi hai...
badhaaee .
इस बिना साये की मोहब्बत का जवाब नहीं ।सहज अभिव्यक्ति है यह ।
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