Sunday, December 6, 2009

तेरा वजूद

तीसरे मोड़ के
जेब्रा क्रोसिंग की
आखिरी उदास पट्टी पर
अब भी चमकता है
एक आंसू काले धब्बे सा,
ये मैंने
हर रोज वहीं जा कर पाया
कि
कुछ भी जाया नहीं होता
मेरे ईश्वर की इस दुनिया में,
जैसे आंसू टूट कर भी
पूरी तरह बिखर नहीं जाता.

मेरे अफसोसों में बस
एक यही सालता है मुझे
कि
धूप में मेरा साया
मिल नहीं पाता तेरे साये से,
और नीम अँधेरी शामों में
इक बिना साये की मुहब्बत
मुझसे मिलने आती थी।
फिर भी दोस्त
अपनी आँखों में
अब भी तुझे छुपा के रखा है
ऐसा नहीं है कि
तेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है.






















[तस्वीर सौजन्य : http://www.foundshit.com/tag/shadows/]

20 comments:

  1. गहरी बातें , तबियत ख़राब है पर टिप्पणी किए बिना रुका नहीं जा रहा |
    बहुत सुंदर , ये कोलतार के निशान याद रखने लायक हैं |
    अंधेरी शामों में साये की जरुरत ही नहीं होती , धूप में जब साये की जरुरत होती है तो अफ़सोस , साया नदारद होता है , और बड़ा दम लगता है , क्या फर्क पड़ता है छाया उसे बनना पड़ता है या हमें ,love is always a one way traffic.

    ReplyDelete
  2. फिर भी दोस्त
    अपनी आँखों में
    अब भी तुझे छुपा के रखा है
    ऐसा नहीं है कि
    तेरा वजूद
    सिर्फ तेरे साथ चलता है.
    बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये लाजवाब अभिव्यक्ति शुभकामनायें

    ReplyDelete
  3. मेरे अफसोसों में बस
    एक यही सालता है मुझे
    कि
    धूप में मेरा साया
    मिल नहीं पाता तेरे साये से,
    और नीम अँधेरी शामों में
    इक बिना साये की मुहब्बत
    मुझसे मिलने आती थी।

    इन पंक्तियों मे मुझे अलग ही बिंब मिले... पता नही आप ने किस भाव में लिखा...मगर मैने जिस समझ से पढ़ा उससे मुग्ध हूँ...! बहुत गहरी और संवेदनशील कविता....!

    ReplyDelete
  4. अपनी आँखों में
    अब भी तुझे छुपा के रखा है
    ऐसा नहीं है कि
    तेरा वजूद
    सिर्फ तेरे साथ चलता है.


    बहुत गहरे शब्द ........ प्रेम की उत्कृष्ट अभियक्ति ......... कुछ पल खामोशी छा गयी पढ़ने के बाद ........

    ReplyDelete
  5. ऐसा नहीं है कि
    तेरा वजूद
    सिर्फ तेरे साथ चलता है.
    wakai mein bhi mugdh hoon aapki rachnasheelta par.

    ReplyDelete
  6. ऐसा नहीं है कि
    तेरा वजूद
    सिर्फ तेरे साथ चलता है.

    क्या बात है !

    ReplyDelete
  7. यह नवगीत इतना पसन्द आया कि
    कई बार पढ़ना पड़ा!

    ReplyDelete
  8. कविता तो है ही बेहतरीन साथ ही साथ ये तस्वीर भी बहुत धाँसू है

    ReplyDelete
  9. कवि सच में हर विधान से परे जाता है, उसे अतिक्रमित करता है. मेरे ही कल के गद्य का कवि के पास लगभग विपरीत विकल्प मौजूद है.सच में कविता शाश्वत को रचने का सामर्थ्य रखती है.

    ReplyDelete
  10. संजय जी के कमेन्ट को कविता के बाद पढ़ा तो अचरज हुआ कि उन्होंने कितनी बारीकी से इसे देखा है. सब सुधि लेखकों ने इसे स्नेह दिया है और मुझे भी लगता है कि कविता में कुछ है जो आकर्षित करता है.

    ReplyDelete
  11. मेरे अफसोसों में बस
    एक यही सालता है मुझे
    कि
    धूप में मेरा साया
    मिल नहीं पाता तेरे साये से,

    सोचता हूँ के कभी कभी गम भी इतना खूबसूरत क्यों दिखाई देता है सफ्हो पर ?

    ReplyDelete
  12. ऐसा नहीं है कि
    तेरा वजूद
    सिर्फ तेरे साथ चलता है..कुछ साए यूँ ही साथ साथ चलते हैं और अपन होने का आभास देते रहते हैं .बहुत बढ़िया लिखा है आपने ..शुक्रिया

    ReplyDelete
  13. अनुभूतियों का सही चित्रण

    ReplyDelete
  14. आपकी कुछ पुरानी पोस्ट भी पढ़ी है और कुछेक याद भी है... पहली बार लिख रहा हूँ... अच्छा लिखती हैं... नए ओर ध्यान दिलाती...

    ReplyDelete
  15. आज एक लंबे अंतराल के बाद आ रहा हूँ आपको पढ़ने और अब खुद पे क्रोध आ रहा है कि क्यों किया ये विलंब।

    इस अफसोस की बात...अपने साये से उसके साये के ना मिल पाने का अफसोस और उसे बयां करने का अंदाज...उफ़्फ़्फ़्फ़!

    और अचानक से ध्यान चला जाता है साइड -बार पर खुद के लिये लिखी पंक्तियों पर। एक और उफ़्फ़्फ़्फ़!

    ReplyDelete
  16. अरे हाँ, कविता के नीचे की वो अद्‍भुत तस्वीर...उसके लिये एक और उफ़्फ़्फ़्फ़!

    ReplyDelete
  17. aapki rachna-sheelta
    apne aap meiN
    anoothi hai...
    badhaaee .

    ReplyDelete
  18. इस बिना साये की मोहब्बत का जवाब नहीं ।सहज अभिव्यक्ति है यह ।

    ReplyDelete