इस साल नवम्बर में सरदी जब पहाड़ को पार कर घर के आँगन तक पहुँचेगी चाय के लिए तुलसी के पत्ते लेने मैं बाहर आया करुँगी तब आना तुम खिड़की पे देखूं, कैसा दिखता है लाल स्कार्फ तुम्हारे गले में.
मैंने जब उसे बुना था, मां दहकते लाल उपलों पर सेक रही थी मकई की मोटी रोटियां, आंच से आती रोशनी में वह मुझे खुश दिखाई दिया करती थी, उसके माथे के नूर से मिल कर भीतर और बाहर की आग हो जाया करती थी एकमेव.
तुम खिड़की पे आना... नए मौसम की सरदी बन कर, कि तुम जब लाल स्कार्फ नहीं पहनते लगता है माँ भी मेरे पास नहीं होती।
तुम खिड़की पे आना... नए मौसम की सरदी बन कर,agar kahun behad khoobsurat kavita to aap samjhe ki mere pas tareef ke liye proper words nahi hai ya kam hai.....kyee baar padti hun apki kavitaye fir fir aake....
तुम खिड़की पे आना... नए मौसम की सरदी बन कर, कि तुम जब लाल स्कार्फ नहीं पहनते लगता है माँ भी मेरे पास नहीं होती...
AAPKI KAVITA BAHOOT HI MAASOOM ... DIL MEIN BHEEGA SA EHSAAS JAGAATI HAI .... PAHAADI MOUSAM KE SAATH YE KAVITA KISI DHOOP KI TARAH FAILI HUYEE MAHSOOS HO RAHI HAI .... ADHBUDH RACHNA ....
"लाल स्कार्फ" के माध्यम से
ReplyDeleteशरद-ऋतु का सुन्दर चित्रण!
बधाई!
मौसम और भावनाओं दोनों का सुन्दर वर्णन.
ReplyDeleteउसके माथे के नूर से मिल कर
ReplyDeleteभीतर और बाहर की आग
हो जाया करती थी एकमेव.
सुंदर कविता.
तुम खिड़की पे आना...
ReplyDeleteनए मौसम की सरदी बन कर,agar kahun behad khoobsurat kavita to aap samjhe ki mere pas tareef ke liye proper words nahi hai ya kam hai.....kyee baar padti hun apki kavitaye fir fir aake....
तुम खिड़की पे आना...
ReplyDeleteनए मौसम की सरदी बन कर,
कि
तुम जब लाल स्कार्फ नहीं पहनते
लगता है माँ भी मेरे पास नहीं होती...
AAPKI KAVITA BAHOOT HI MAASOOM ... DIL MEIN BHEEGA SA EHSAAS JAGAATI HAI .... PAHAADI MOUSAM KE SAATH YE KAVITA KISI DHOOP KI TARAH FAILI HUYEE MAHSOOS HO RAHI HAI .... ADHBUDH RACHNA ....
समय शायद इसी उधेड़ बुन में बीत जाता है.
ReplyDeleteअच्छी कविता. एक लम्बे इंतजार के बाद देखने को मिली है अगर सर्दी नहीं आती तो ?
again one of the best expression....
ReplyDeletei can say todays best....
गजब की ओरिजिनलिटी..
ReplyDeleteचंद पंक्तियाँ मआनी की जंजीरों को कितनी आसानी से बेबस कर देती हैं..जैसे कि यह
नए मौसम की सरदी बन कर,
कि
तुम जब लाल स्कार्फ नहीं पहनते
लगता है माँ भी मेरे पास नहीं होती।
लाल स्कार्फ!एक अरसे बाद इस सुंदर शब्द को हिंदी कविता में देखा है.सहज लगती,सुंदर कविता.सीधी मन तक पहुंचती.
ReplyDeleteबहुत कम कवितायेँ ऐसी होती है जो इतना गहरा असर मन पर छोडती है...निजी तौर पर मुझे यह आपकी बेहतरीन रचना लगी..ये
ReplyDeleteतुम खिड़की पे आना...
नए मौसम की सरदी बन कर,
कि
तुम जब लाल स्कार्फ नहीं पहनते
लगता है माँ भी मेरे पास नहीं होती...
acha ahsaas buna hai lal skarf ke sath
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