धूल सी उड़ती है ख्वाबों में
धुंधले चेहरे
और ज्यादा खो जाते हैं
सूखे हुए इस दरिया के पार
स्मृतियों की पदचाप
सृष्टि के विनाश को उठते
वर्तुल सा भ्रम जगाती है
कि आस पास ही है
प्यास का फंदा
फिर भी सदियों से
कुओं के बचे हुए हैं कुछ पाट
और कुछ टूटी फूटी इबारतें
जिंदगी के लिए.
रेत पर पसरी
नाउम्मीद ख्वाहिशें विचरती है
मृग सी अमिट प्यास लिए
अगर मैं मरूंगी
अपने प्रियजनों के सम्मुख
तो देह सदगति पायेगी
न भी हुआ ऐसा
तो भी रेत तो भर ही लेगी
मुझे अपने अंक में...
मेरे जाने पर
तुम कोसना मत इस रेत को
पानी की प्यास से
कम ही मरता है आदमी
मृत्यु तो तब है
जब सूख जाये मेरी आँख से
तेरी याद का पानी.
पानी की प्यास से
ReplyDeleteकम ही मरता है आदमी
मृत्यु तो तब है
जब सूख जाये मेरी आँख से
तेरी याद का पानी.....yah mout kabhi na aaye aameen.
पानी की प्यास से
ReplyDeleteकम ही मरता है आदमी
मृत्यु तो तब है
जब सूख जाये मेरी आँख से
तेरी याद का पानी.
आपकी इन पंक्तियों को सादर नमन.
बहुत खूब लिखा है आपने ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना, बधाई.
ReplyDeleteaapki rachana ke har shabd ko padhte hue achchhi rachana padhane ka aabhaas hota hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteपानी की प्यास से
कम ही मरता है आदमी
मृत्यु तो तब है
जब सूख जाये मेरी आँख से
तेरी याद का पानी.
उम्दा रचना
ReplyDeleteमेरे जाने पर
ReplyDeleteतुम कोसना मत इस रेत को
पानी की प्यास से
कम ही मरता है आदमी
मृत्यु तो तब है
जब सूख जाये मेरी आँख से
तेरी याद का पानी.
यह तो पंच लाइन हो गयी. ... "जाते जाते वो मुझे सच्ची निशानी दे गया" वाली या फिर वसीयत की तरह...
कविता के साथ तस्वीर का साम्य अच्छा लगा ... ले जा रहा हूँ ये पग्तियाँ
पानी की प्यास से
ReplyDeleteकम ही मरता है आदमी
मृत्यु तो तब है
जब सूख जाये मेरी आँख से
तेरी याद का पानी.
आँखों में अगर नमी नहीं रही तो सोच लेना अब ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं रही..
रेत पर पसरी
ReplyDeleteनाउम्मीद ख्वाहिशें विचरती है
मृग सी अमिट प्यास लिए
bahut khoob....
sundar rachna...
विलंब से आने की क्षमा... अंतिम पंक्तियाँ अधिक सुंदर बनाती हैं कविता को...!
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