घना जंगल नहीं है
हरित पल्लव और
बासंती परिधान से सजी
धरती भी नहीं.
एक चालीस के पार विधवा
मींची हुई आंखों से
बुनती है एक बिछावन और
पेचवर्क से सुलझा लेना चाहती है
अपनी ज़िंदगी के उलझे हुए पेच.
सफ़ेद सूती कपड़े पर
रंगीन धागों से उगाती है जंगल
किनारे पर बिठाती है हाथियों का पहरा
हर एक टांक के बाद
झांक लेती है गली के पार
कि उसके बारह साल के बच्चे की
अब चाय की दुकान से छुट्टी हुई होगी.
दो लोगों के पलंग पर
बिछ जाने लायक
इस चादर के पूरा होते ही
उसने सोच रखा है
अपनी आँखें जरूर दिखाएगी
शहर के बड़े डागदर को.
अब साफ़ दिखाई नहीं देते हैं कटाव
पिछली चादर में
हाथी की पीठ पर लग गया था
ऊंट का कूबड़
इस पर वह देर तक खिलखिलाई थी
और अगले पूरे महीने
उसने बिना टोस्ट के पी थी चाय.
अपने हुनर की तारीफ में कहती है
बाई जी
मेरी चादर के पंछी बोलते हैं
हाथी पी जाते हैं घडा भर शराब
तोते लड़ाते रहते हैं चोंच प्यार से और
आदमी करता है शिकार
जैसे ईंट के भट्टे से
लौटता था दीनिये का बाप.
हंजू,
तुमने कभी बाघ नहीं बनाया ?
मेरे इस सवाल पर विस्मित हो
पूछती है कैसा दिखता है बाघ ?
[ Image Courtesy : 4to40।com ]
मेरी चादर के पंछी बोलते हैं
ReplyDeleteहाथी पी जाते हैं घडा भर शराब
तोते लड़ाते रहते हैं चोंच प्यार से और
आदमी करता है शिकार
जैसे ईंट के भट्टे से
लौटता था दीनिये का बाप.
हंजू,
तुमने कभी बाघ नहीं बनाया ?
मेरे इस सवाल पर विस्मित हो
पूछती है कैसा दिखता है बाघ ?
yah kavita sab kuchh kah jati hai...
ReplyDeletesuperb !
बहुत कुछ कह दिया इस कविता ने |
ReplyDeleteबढ़िया रचना !!
awesome...beyond words.
ReplyDeleteबहुत अच्छे...! बस इतना ही कह पा रही हूँ....!
ReplyDeleteक्या बात है! ... एक चादर में समेट ली औरत की जिंदगी, मज़बूरी, तपिश, सघनता साथ ही जंगल और प्रक्रति..
ReplyDeleteकमाल है..कहाँ की बात कहाँ ले गये आप..और कड़ी बात कितनी सहजता से कह दी..वैसे कढ़ाई करने वाली स्त्री पर इतनी खूबसूरत कढ़ाईदार कविता पहली बार पढ़ी है..और जीवन की यह सहजता सबके इम्पेशेंट जीवन मे इतनी सहज क्यों नही होती..
ReplyDeleteहाथी की पीठ पर लग गया था
ऊंट का कूबड़
इस पर वह देर तक खिलखिलाई थी
और अगले पूरे महीने
उसने बिना टोस्ट के पी थी चाय.
वैसे पेच्वर्क का आइडिया न होने से इसके द्वारा जिंदगी के पेच सुलझाने की बात मुश्किल लगी समझने मे..
ज़बरदस्त. और क्या कहूँ,सूती कपडे के केनवास पर संवेदनाएं टांकती स्त्री के बारे में? इससे बेहतर कुछ कहा नहीं जा रहा.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता है, वाह भई वाह!
ReplyDelete"वाकई में आनंददायक रचना......."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com