इस साल नवम्बर में सरदी जब पहाड़ को पार कर घर के आँगन तक पहुँचेगी चाय के लिए तुलसी के पत्ते लेने मैं बाहर आया करुँगी तब आना तुम खिड़की पे देखूं, कैसा दिखता है लाल स्कार्फ तुम्हारे गले में.
मैंने जब उसे बुना था, मां दहकते लाल उपलों पर सेक रही थी मकई की मोटी रोटियां, आंच से आती रोशनी में वह मुझे खुश दिखाई दिया करती थी, उसके माथे के नूर से मिल कर भीतर और बाहर की आग हो जाया करती थी एकमेव.
तुम खिड़की पे आना... नए मौसम की सरदी बन कर, कि तुम जब लाल स्कार्फ नहीं पहनते लगता है माँ भी मेरे पास नहीं होती।