Saturday, May 15, 2010

सखी, बातें कितनी सच्ची होती हैं





















आईना

पानी उतर रहा है तुम्हारे शीशे से
और साफ़ नहीं दिखाई देती है सूरत

नहीं
ये आईना तो
बच्चों के बाप की तरह गोलमोल बात करता है

चिट्ठी
दीवार से लगे बिजली के तार के पीछे
ये किसकी चिट्ठी खोंस रखी है तुमने

पता नहीं
पर दिखती कितनी सुन्दर है


सुविधा
घर तो बड़ा साफ़ सुथरा है

हाँ
सब आराम है, चार लोगों के लिए
पांच चारपाई और दो मोबाईल है
बस एक शौचालय नहीं है


बातचीत
बहन जो मैंने यूं ही पूछा
तुमने बुरा तो नहीं माना ?

बुरा क्यों ?
सुख के दो पल बीते
दुःख की दो घड़ियाँ भूली

चलूँ ?
हां जरूर, तुमको भी तो काम होगा...

जब घर के आँगन में बुहारी न लगी हों
तब मुझे जोर से देना आवाज़
कि मेरी सांस रुक न गयी हों.

[Image courtesy : http://listverse.com/]