मित्रता के इतिहास में दो शब्द ऐसे आये कि लोग इससे आँखें बचा कर निकलने लगे. एक था बोस्टन मेरिजेज यानि लेस्बियन और दूसरा होमो सेक्स्युअल. वस्तुतः मित्रता और उसके विभिन्न आयाम नए नहीं हैं, न ही पुराने. ये तो मनुष्य और अन्य प्राणियों के साथ ही जन्मे हैं और जब तक यह सभ्यता बची रहेगी तब तक मित्रता भी बची ही रहेगी. समलेंगिकता के लिए जिस फ्रेंडशिप को जिम्मेदार ठहराए जाने का प्रयास किया जाता रहा है वह तो आदिम काल से ही जीवित है. धर्म ग्रंथों ने इसे अनुचित बताया है यानि तब भी इस तरह के संबन्ध रहे होंगे. समलैंगिक संबन्ध चाहे जितने गैर जायज हो किन्तु मनुष्य की अपनी कमजोरियां उसके उद्भव से है. आगे भी बनी रही रहेगी. जिस तरह से निस्वार्थ साथ की अनुभूति को हम फ्रेंडशिप कह कर उल्लासित होते हैं. उसी तरह कुछ मित्र इससे आगे का जीवन जीते आ रहे हैं.
महिलाओं के एक साथ रहने की जीवन चर्या को अमेरिकन लोग बोस्टन मेरिजेज कहते रहे हैं. उनका मानना है कि दो महिलाये जो बिना किसी पुरुष के सहयोग से एक ही छत के नीचे साथ रहती हों, बोस्टन मेरिज है. इसमें आवश्यक नहीं कि वे शारीरिक रूप से भी जुड़ी हुई हों किन्तु इस सहवास को भी लेस्बियन आचरण ही माना जाता रहा है. इस जीवन शैली को नकारा जाता रहा है, इससे समाज की व्यवस्था के भंग हो जाने के खतरे के किस्से रचे गए किन्तु ये समाज के बीच का इतना छोटा हिस्सा था कि इससे सम्पूर्ण व्यवस्था पर अभी तक कोई आंच नहीं आई है. इसका दुष्प्रभाव ये रहा कि पुरुष और महिला के समलैंगिक मित्रों को फूहड़ता से जोड़ कर देखा जाने लगा. अधिसंख्य स्त्रियों और पुरुषों ने अपने आचरण में यथा संभव बदलाव किया या फिर उन्होंने इन सम्बंधों को सार्वजनिक होने से बचाना आरम्भ कर दिया. इस तरह की मित्रता के मसहले पर हमारे देश में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी रूप में जबरदस्ती ना करने का आदेश दिया है.
फ्रेंडशिप को लेस्बियन और होमो जैसे शब्दों ने बहुत प्रभावित किया लेकिन इस खूबसूरत अहसास ने अपनी उपस्थिति को और सुंदर बनाया है. आज भी अपने दुःख और सुखों को बांटने के लिए मनुष्य मित्रों को बुलाता रहता है. प्रेम से अलग हट कर के इस अनुभव को बहुत बार 'प्रेम' शब्द से सभी जोड़ा गया और अनपेक्षित रूप से जहाँ दोस्ती है वहां प्रेम की आंच उपस्थित है, के नारे उछाले गए. कोई दो मित्र जो अपने निजी जीवन के तमाम अच्छे बुरे पलों को बाँटते हुए आगे बढ़ते हैं तो ये कतई जरूरी नहीं है कि वे प्रेमालाप में डूबे हैं. एक बेहद निजी सुरक्षा बोध का नाम भी तो है मित्रता. बीती सदी में मित्र क्लब हुआ करते थे जहाँ एक नियत समयांतराल से परिवार और परिवार के सभी मित्र मिलते और आनंद मनाया करते थे. वे खाने - पीने की पार्टियाँ भी हो सकती थी या फिर खेलकूद की या सिर्फ चाय पानी की. उनके होने से ही बहुत बार हम खुद को सामाजिक कह पाते थे यानि मित्रता हर हल में सामजिक ही है.
फ्रेंडस क्लब में समय के साथ बदलाव आया जैसे जैसे तकनीक का विस्तार हुआ वैसे वैसे ही दोस्ती के ठिकाने बदलने लग गए. भारत में अस्सी और नब्बे का दशक दोस्ती को कॉफ़ी हॉउस और किटी पार्टियों से बाहर निकाल कर सिनेमा घरों और थियेटरों में लेकर आया. पार्कों और नदी किनारे होने वाले "गोठ" आयोजन भी बदल कर रेस्तराओं की पार्टियों में बदल गए. अपनी ख़ुशी के इज़हार के लिए मित्रों को आमंत्रित करना एक पूर्ण सामाजिक क्रिया बेहद सुकून भरी हुई थी. ठीक इसके साथ बेहद दुःख भरे क्षणों में भी मित्रों की पहुँच भी बढ़ने लगी थी. आठवे दशक के तीस साल बाद आज मास कम्यूनिकेशन के क्षेत्र में मिली आशातीत सफलता ने मित्र के मायने ही बदल दिये हैं.
मेरी एक मित्र अंजलि उडीसा की रहने वाली है. उसने एक बार मुझे वहां की एक खास परंपरा के बारे में बताया था कि वहां पर मित्र बनाये जाने का रिवाज है. यह कार्यक्रम एक सार्वजनिक समारोह जैसा होता है जिसमे लगभग किसी अंगेजमेंट सेरेमनी जैसा लुक दिखाई देता है. किसी भी उम्र के दो विपरीत लिंगी इसमें मित्र हो सकते हैं. इस मित्रता में ऐज़ और सोशियल स्टेट्स की कोई लिमिट नहीं है. इस समारोह के बाद वे दोनों परिवार का हिस्सा हो जाया करते हैं. दोनों परिवार बिना किसी रक्त संबन्ध के सम्बन्धी हो जाते हैं. मुझे लगता है कि बेहतर समाज के निर्माण की भावना इस कार्य में जरूर छिपी रही होगी. किस सुन्दरता से आप अपने लिए एक नया घर और परिवार पाते हैं. टूटते हुए रिश्तों के बीच किसी ऐसे रिश्ते के बारे में सोचना मुझे आज भी बहुत प्रीतिकर लगता है.
तकनीक के इस युग में आज ऑरकुट और फेसबुक जैसी सैंकड़ों शोसल नेट्वर्किंग साईट्स उपलब्ध है. इन साईट्स पर आपको फ्रेंड के लिए उपयुक्त लोग मिलते हैं और कुछ ही क्लिक्स में आप उनके फ्रेंड हो सकते हैं. ये साईट्स इतनी लोकप्रिय हो चुकी हैं कहा जाता है कि इनके यूजर्स की संख्या भारत और चीन की आबादी के योग से भी अधिक है जबकि वास्तविक रूप से दुनिया भर में इंटरनेट की पहुँच कुल आबादी के पांच फीसद हिस्से तक पहुंचना भी मुश्किल लग रहा है. ऐसे में ये आंकड़ा आश्चर्यचकित करने वाला है. शोसल नेटवर्किंग साईट्स ने मित्रता के जो नए स्वरूप हमारे सामने रखे हैं. वे चौंकाने वाले हैं. कहा जाता है कि किसी के एक सच्चा मित्र हो तो वह इंसान सौभाग्यशाली है इसके ठीक विपरीत फेसबुक पर फ्रेंड लिमिट पांच हज़ार की है और कल एक मित्र को एड करने के लिए मैंने क्लिक किया तो वह प्रोफाइल इस लिमिट को छू चुका था. कितना भाग्यशाली इन्सान है वह जिसके पांच हज़ार दोस्त हैं ? एक दोस्त के मुकाबले पांच हज़ार तो मन में एक सवाल भी उठता है कि ये कैसी दोस्ती है जिसमे इंसान को पांच हज़ार दोस्तों के नाम भी शायद ही याद हो.
व्यक्ति अपने वास्तविक दुखों से मुक्ति पाने के लिए इस तरह की शोसल साईट्स पर जाता है. यहाँ के अनुभव वास्तव में किसी मनोरोगी को दिये गए सेडेटिव जैसे ही हैं कि जैसे ही आप उसके नशे से बाहर आये समस्याएं जस की तस खड़ी होती हैं तो आप फिर से उसी नशे में डूब कर उन्हें भूल जाना चाहते हैं. इन साईट्स पर निश्चित ही आपको नए लोगों से संवाद करने को मिलता है किन्तु ये इतनी समय खाऊ हैं कि हम अपने वास्तविक मित्रों की उपेक्षा करने लगते हैं. प्रकृति से हमारा संबन्ध टूटता जाता है. स्वास्थ्य के लिए कई गंभीर चुनौतियाँ भी यही आकर खड़ी हुई हैं. स्पर्श के सुख से हम वंचित होते जा रहे हैं और एक आभासी संसार में नकली गुलदस्ते भेजते हैं, न याद रहने योग्य जन्म दिनों पर मुबारकबाद देते हैं और जिंजर बीयर की तस्वीर पाकर ही सोचते हैं कि आज तो पार्टी हो गई.
फ्रेंडशिप के बहाने अपने कारोबार में लगी हुई ये साईट्स धोखे का आवरण ओढ़े हुए हैं. फेसबुक का ही एक एप्लीकेशन है आर यू इंटरेसटेड ? मुफ्त में नेट्वर्किंग उपलब्ध करने का दावा यहाँ आते ही खुल जाता है. इसमें आप महिला या पुरुषों को ये बता सकते हैं कि मेरी आप में रूचि है. आपको इस सेवा का लाभ उठाने के लिए छः माह के दस डॉलर से शुरू हुआ प्लान चुनना होता है. इसके कई प्रीमियम वर्जन भी हैं. कुल मिला कर इस एप्लीकेशन में अमेरिकन एडल्ट फ्रेंड फाईन्डर से अलग कुछ नहीं है. यानि कोई सेवा समाज सेवा नहीं है सब स्वपोषित और निस्वार्थ होने के दावे सब कुछ वर्च्यूअल होने के बावजूद पैसा बटोरने के मामले में असली हैं.
मेरे कुछ मित्रों का मानना है कि ऐसी मित्रता में कोई खोट नहीं है मगर मैं उनसे पूछती हूँ कि इसका हासिल भी क्या है ? आपके सभी मित्र अपने व्यक्तिगत सुख और दुखों की जगह यू ट्यूब से लिए गए वीडियो, पुराने शायरों के शेर, अंग्रेजी में क्योट्स जो एस एम एस बन कर मोबाईल के जरिये आप तक पहले ही पहुँच चुके होते हैं उन्हें बांटते रहते हैं? इस वर्च्यूअल फ्रेंडशिप में बातें भी वैसी ही हैं. इस समय और श्रम - धन खपाऊ कार्य से बेहतर है कि घर और परिवार के साथ समाज के सक्रिय हिस्से हो कर असली सुख और दुखों में हाथ बढ़ाये जाएँ. मित्र एक भी सच्चा मिल गया तो वह जीवन की सबसे बड़ी पूँजी होगी ये कहावत आपको चरितार्थ होती दिखाई देगी.
महिलाओं के एक साथ रहने की जीवन चर्या को अमेरिकन लोग बोस्टन मेरिजेज कहते रहे हैं. उनका मानना है कि दो महिलाये जो बिना किसी पुरुष के सहयोग से एक ही छत के नीचे साथ रहती हों, बोस्टन मेरिज है. इसमें आवश्यक नहीं कि वे शारीरिक रूप से भी जुड़ी हुई हों किन्तु इस सहवास को भी लेस्बियन आचरण ही माना जाता रहा है. इस जीवन शैली को नकारा जाता रहा है, इससे समाज की व्यवस्था के भंग हो जाने के खतरे के किस्से रचे गए किन्तु ये समाज के बीच का इतना छोटा हिस्सा था कि इससे सम्पूर्ण व्यवस्था पर अभी तक कोई आंच नहीं आई है. इसका दुष्प्रभाव ये रहा कि पुरुष और महिला के समलैंगिक मित्रों को फूहड़ता से जोड़ कर देखा जाने लगा. अधिसंख्य स्त्रियों और पुरुषों ने अपने आचरण में यथा संभव बदलाव किया या फिर उन्होंने इन सम्बंधों को सार्वजनिक होने से बचाना आरम्भ कर दिया. इस तरह की मित्रता के मसहले पर हमारे देश में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी रूप में जबरदस्ती ना करने का आदेश दिया है.
फ्रेंडशिप को लेस्बियन और होमो जैसे शब्दों ने बहुत प्रभावित किया लेकिन इस खूबसूरत अहसास ने अपनी उपस्थिति को और सुंदर बनाया है. आज भी अपने दुःख और सुखों को बांटने के लिए मनुष्य मित्रों को बुलाता रहता है. प्रेम से अलग हट कर के इस अनुभव को बहुत बार 'प्रेम' शब्द से सभी जोड़ा गया और अनपेक्षित रूप से जहाँ दोस्ती है वहां प्रेम की आंच उपस्थित है, के नारे उछाले गए. कोई दो मित्र जो अपने निजी जीवन के तमाम अच्छे बुरे पलों को बाँटते हुए आगे बढ़ते हैं तो ये कतई जरूरी नहीं है कि वे प्रेमालाप में डूबे हैं. एक बेहद निजी सुरक्षा बोध का नाम भी तो है मित्रता. बीती सदी में मित्र क्लब हुआ करते थे जहाँ एक नियत समयांतराल से परिवार और परिवार के सभी मित्र मिलते और आनंद मनाया करते थे. वे खाने - पीने की पार्टियाँ भी हो सकती थी या फिर खेलकूद की या सिर्फ चाय पानी की. उनके होने से ही बहुत बार हम खुद को सामाजिक कह पाते थे यानि मित्रता हर हल में सामजिक ही है.
फ्रेंडस क्लब में समय के साथ बदलाव आया जैसे जैसे तकनीक का विस्तार हुआ वैसे वैसे ही दोस्ती के ठिकाने बदलने लग गए. भारत में अस्सी और नब्बे का दशक दोस्ती को कॉफ़ी हॉउस और किटी पार्टियों से बाहर निकाल कर सिनेमा घरों और थियेटरों में लेकर आया. पार्कों और नदी किनारे होने वाले "गोठ" आयोजन भी बदल कर रेस्तराओं की पार्टियों में बदल गए. अपनी ख़ुशी के इज़हार के लिए मित्रों को आमंत्रित करना एक पूर्ण सामाजिक क्रिया बेहद सुकून भरी हुई थी. ठीक इसके साथ बेहद दुःख भरे क्षणों में भी मित्रों की पहुँच भी बढ़ने लगी थी. आठवे दशक के तीस साल बाद आज मास कम्यूनिकेशन के क्षेत्र में मिली आशातीत सफलता ने मित्र के मायने ही बदल दिये हैं.
मेरी एक मित्र अंजलि उडीसा की रहने वाली है. उसने एक बार मुझे वहां की एक खास परंपरा के बारे में बताया था कि वहां पर मित्र बनाये जाने का रिवाज है. यह कार्यक्रम एक सार्वजनिक समारोह जैसा होता है जिसमे लगभग किसी अंगेजमेंट सेरेमनी जैसा लुक दिखाई देता है. किसी भी उम्र के दो विपरीत लिंगी इसमें मित्र हो सकते हैं. इस मित्रता में ऐज़ और सोशियल स्टेट्स की कोई लिमिट नहीं है. इस समारोह के बाद वे दोनों परिवार का हिस्सा हो जाया करते हैं. दोनों परिवार बिना किसी रक्त संबन्ध के सम्बन्धी हो जाते हैं. मुझे लगता है कि बेहतर समाज के निर्माण की भावना इस कार्य में जरूर छिपी रही होगी. किस सुन्दरता से आप अपने लिए एक नया घर और परिवार पाते हैं. टूटते हुए रिश्तों के बीच किसी ऐसे रिश्ते के बारे में सोचना मुझे आज भी बहुत प्रीतिकर लगता है.
तकनीक के इस युग में आज ऑरकुट और फेसबुक जैसी सैंकड़ों शोसल नेट्वर्किंग साईट्स उपलब्ध है. इन साईट्स पर आपको फ्रेंड के लिए उपयुक्त लोग मिलते हैं और कुछ ही क्लिक्स में आप उनके फ्रेंड हो सकते हैं. ये साईट्स इतनी लोकप्रिय हो चुकी हैं कहा जाता है कि इनके यूजर्स की संख्या भारत और चीन की आबादी के योग से भी अधिक है जबकि वास्तविक रूप से दुनिया भर में इंटरनेट की पहुँच कुल आबादी के पांच फीसद हिस्से तक पहुंचना भी मुश्किल लग रहा है. ऐसे में ये आंकड़ा आश्चर्यचकित करने वाला है. शोसल नेटवर्किंग साईट्स ने मित्रता के जो नए स्वरूप हमारे सामने रखे हैं. वे चौंकाने वाले हैं. कहा जाता है कि किसी के एक सच्चा मित्र हो तो वह इंसान सौभाग्यशाली है इसके ठीक विपरीत फेसबुक पर फ्रेंड लिमिट पांच हज़ार की है और कल एक मित्र को एड करने के लिए मैंने क्लिक किया तो वह प्रोफाइल इस लिमिट को छू चुका था. कितना भाग्यशाली इन्सान है वह जिसके पांच हज़ार दोस्त हैं ? एक दोस्त के मुकाबले पांच हज़ार तो मन में एक सवाल भी उठता है कि ये कैसी दोस्ती है जिसमे इंसान को पांच हज़ार दोस्तों के नाम भी शायद ही याद हो.
व्यक्ति अपने वास्तविक दुखों से मुक्ति पाने के लिए इस तरह की शोसल साईट्स पर जाता है. यहाँ के अनुभव वास्तव में किसी मनोरोगी को दिये गए सेडेटिव जैसे ही हैं कि जैसे ही आप उसके नशे से बाहर आये समस्याएं जस की तस खड़ी होती हैं तो आप फिर से उसी नशे में डूब कर उन्हें भूल जाना चाहते हैं. इन साईट्स पर निश्चित ही आपको नए लोगों से संवाद करने को मिलता है किन्तु ये इतनी समय खाऊ हैं कि हम अपने वास्तविक मित्रों की उपेक्षा करने लगते हैं. प्रकृति से हमारा संबन्ध टूटता जाता है. स्वास्थ्य के लिए कई गंभीर चुनौतियाँ भी यही आकर खड़ी हुई हैं. स्पर्श के सुख से हम वंचित होते जा रहे हैं और एक आभासी संसार में नकली गुलदस्ते भेजते हैं, न याद रहने योग्य जन्म दिनों पर मुबारकबाद देते हैं और जिंजर बीयर की तस्वीर पाकर ही सोचते हैं कि आज तो पार्टी हो गई.
फ्रेंडशिप के बहाने अपने कारोबार में लगी हुई ये साईट्स धोखे का आवरण ओढ़े हुए हैं. फेसबुक का ही एक एप्लीकेशन है आर यू इंटरेसटेड ? मुफ्त में नेट्वर्किंग उपलब्ध करने का दावा यहाँ आते ही खुल जाता है. इसमें आप महिला या पुरुषों को ये बता सकते हैं कि मेरी आप में रूचि है. आपको इस सेवा का लाभ उठाने के लिए छः माह के दस डॉलर से शुरू हुआ प्लान चुनना होता है. इसके कई प्रीमियम वर्जन भी हैं. कुल मिला कर इस एप्लीकेशन में अमेरिकन एडल्ट फ्रेंड फाईन्डर से अलग कुछ नहीं है. यानि कोई सेवा समाज सेवा नहीं है सब स्वपोषित और निस्वार्थ होने के दावे सब कुछ वर्च्यूअल होने के बावजूद पैसा बटोरने के मामले में असली हैं.
मेरे कुछ मित्रों का मानना है कि ऐसी मित्रता में कोई खोट नहीं है मगर मैं उनसे पूछती हूँ कि इसका हासिल भी क्या है ? आपके सभी मित्र अपने व्यक्तिगत सुख और दुखों की जगह यू ट्यूब से लिए गए वीडियो, पुराने शायरों के शेर, अंग्रेजी में क्योट्स जो एस एम एस बन कर मोबाईल के जरिये आप तक पहले ही पहुँच चुके होते हैं उन्हें बांटते रहते हैं? इस वर्च्यूअल फ्रेंडशिप में बातें भी वैसी ही हैं. इस समय और श्रम - धन खपाऊ कार्य से बेहतर है कि घर और परिवार के साथ समाज के सक्रिय हिस्से हो कर असली सुख और दुखों में हाथ बढ़ाये जाएँ. मित्र एक भी सच्चा मिल गया तो वह जीवन की सबसे बड़ी पूँजी होगी ये कहावत आपको चरितार्थ होती दिखाई देगी.
यह आलेख एक साप्ताहिक परिशिष्ट में कवर स्टोरी के रूप में छपे हुए लेख का हिस्सा है .