तीसरे मोड़ के
जेब्रा क्रोसिंग की
आखिरी उदास पट्टी पर
अब भी चमकता है
एक आंसू काले धब्बे सा,
ये मैंने
हर रोज वहीं जा कर पाया
कि
कुछ भी जाया नहीं होता
मेरे ईश्वर की इस दुनिया में,
जैसे आंसू टूट कर भी
पूरी तरह बिखर नहीं जाता.
मेरे अफसोसों में बस
एक यही सालता है मुझे
कि
धूप में मेरा साया
मिल नहीं पाता तेरे साये से,
और नीम अँधेरी शामों में
इक बिना साये की मुहब्बत
मुझसे मिलने आती थी।
फिर भी दोस्त
अपनी आँखों में
अब भी तुझे छुपा के रखा है
ऐसा नहीं है कि
तेरा वजूद
सिर्फ तेरे साथ चलता है.
[तस्वीर सौजन्य : http://www.foundshit.com/tag/shadows/]