Thursday, March 26, 2009
तुम्हारा रंग
पिछले मोड़ के आखिरी लेम्प पोस्ट पर चिपकी तस्वीर में लड़की कितनी जगह से फटी थी अब भी याद है तुम्हें जबकि मैं कई दिनों से एक ही रंग के फूल तम्हारे सिरहाने रखे गुलदस्ते से बदलती रही हूँ भूल गए तुम। कितने अजब समय में जी रहे है हम की विस्मृतियों के पतझड़ भी लौट कर नहीं आते। फव्वारे पर पानी में किलोल करते पांखियों की ध्वनि सुनाई नहीं देती तुम्हें, जबकि कार में बैठी लड़की को बाईक वाला लड़का क्या कह गया तुम्हारे दिमाग में गूंजता रहता है। जब मैं कहती हूँ कि कितने अदब से झुका था तुम्हारा मित्र मुझे साथ देख कर और तुम्हें सिर्फ़ इतना याद रहा कि उसके बगल से निकली लाल कुरते वाली नवयोवना ने कोल्हापुरी चप्पलें पहनी थी। खिड़की के परदे अब मटमैले हो चलें है आओ इस बार कि तनख्वाह पर बदल ले तो तुम्हें मटमैली धूल के भीतर से घोड़े पर सवार दोनों हाथ लहराता आमिर खान दिखाई पड़ता है और उसमे भी तुम भीड़ में कई रंग तलाश लेते हो जो आज कल की लड़कियां पहन कर दूसरे लोक की हो जाया करती है। सच तो ये है कि जब पहली बार हम मिले थे तो आसमान पीला था, पानी लाल रंग का, पेड़ पौधे नीले हो गए थे इसलिए सब रंग ऐसे खो गए हैं दूसरे रंगों में जैसे तुम मेरे साथ होते हुए भी खो जाया करते हो दूसरों में। एक दिन मैं उसी लेम्प पोस्ट से पीछे मुङ कर जब भीड़ हो जाउंगी तब दिखाई दूंगी तुम्हें पर तब तक मेरे रंग से तुम्हारा रंग अलग हो चुका होगा।
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एक सच जिंदगी का ये भी ...जिसे जीती हैं बहुत सी
ReplyDeleteBahut sundar abhivyakti..badhai !!
ReplyDeleteनिशब्द!! रह गए हम।
ReplyDeleteअति सुंदर।
~जयंत
एक दिन मैं उसी लेम्प पोस्ट से पीछे मुङ कर जब भीड़ हो जाउंगी तब दिखाई दूंगी तुम्हें पर तब तक मेरे रंग से तुम्हारा रंग अलग हो चुका होगा।
ReplyDeletebahut achchha likhati hai.n aap