कूड़े के ढेर में डूबते
सूरज को तलाशती है
गीली उंगलियाँ
उन्होंने ने सुना है
आज आईने बोलेंगे सच।
आज ही हो सकती है
शिनाख्त परेड हत्यारों की
जिन्होंने सफाई से किए थे क़त्ल
कई सारे रंगीन ख्वाब।
देह उन हत्याओं को
ब्लाईंड बता कर चुप है
जबकि दिल को है उम्मीद
राज़ खोले जायेंगे
फैसले बोले जायेंगे।
अगर तुम नही हो
उन हत्यारों में से एक
तो सूरज छुपने ना दो
आज आईने बोलेंगे सच ॥
सूरज को तलाशती है
गीली उंगलियाँ
उन्होंने ने सुना है
आज आईने बोलेंगे सच।
आज ही हो सकती है
शिनाख्त परेड हत्यारों की
जिन्होंने सफाई से किए थे क़त्ल
कई सारे रंगीन ख्वाब।
देह उन हत्याओं को
ब्लाईंड बता कर चुप है
जबकि दिल को है उम्मीद
राज़ खोले जायेंगे
फैसले बोले जायेंगे।
अगर तुम नही हो
उन हत्यारों में से एक
तो सूरज छुपने ना दो
आज आईने बोलेंगे सच ॥
आज आईने बोलेंगे सच ....बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी है ....मुझे बहुत पसंद आई
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति है
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र
अगर तुम नही हो
ReplyDeleteउन हत्यारों में से एक
तो सूरज छुपने ना दो
आज आईने बोलेंगे सच
वाह!
अच्छी कविता है उत्तरार्ध में भावों पर पकड़ नहीं रख पाती, (कृपया अन्यथा ना लें) विगत पोस्ट कि रचना सम्पूर्ण लगी थी कई बार ज्यादा शब्द भी बोझ बन जाया करते हैं. शुभकामनाये !
ReplyDeleteगहरे कहीं हमारे ही भीतर धंसे अपराध बोध पर चौधिया रौशनी डालती कविता.क्या बात है!आपकी कलम यूँ ही उजाले लिखती रहे.
ReplyDeleteदेह उन हत्याओं को
ReplyDeleteब्लाईंड बता कर चुप है
जबकि दिल को है उम्मीद
राज़ खोले जायेंगे
फैसले बोले जायेंगे।
behtar rachna ke liye badhhai.
अनूठी रचना मैम...
ReplyDeleteअभी धीरे-धीरे कर तमाम पोस्ट पढ़ गया हूँ
शब्दों से जो रंग उड़ेलती हैं आप, वो बड़े हसीन हैं..
aaina sach hi bolta hai......bahut badhiya likha hai.
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