Tuesday, March 31, 2009

आईने



कूड़े के ढेर में डूबते
सूरज को तलाशती है
गीली उंगलियाँ
उन्होंने ने सुना है
आज आईने बोलेंगे सच

आज ही हो सकती है
शिनाख्त परेड हत्यारों की
जिन्होंने सफाई से किए थे क़त्ल
कई सारे रंगीन ख्वाब

देह उन हत्याओं को
ब्लाईंड बता कर चुप है
जबकि दिल को है उम्मीद
राज़ खोले जायेंगे
फैसले बोले जायेंगे

अगर तुम नही हो
उन हत्यारों में से एक
तो सूरज छुपने ना दो
आज आईने बोलेंगे सच




8 comments:

  1. आज आईने बोलेंगे सच ....बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी है ....मुझे बहुत पसंद आई

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  2. अगर तुम नही हो
    उन हत्यारों में से एक
    तो सूरज छुपने ना दो
    आज आईने बोलेंगे सच

    वाह!

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  3. अच्छी कविता है उत्तरार्ध में भावों पर पकड़ नहीं रख पाती, (कृपया अन्यथा ना लें) विगत पोस्ट कि रचना सम्पूर्ण लगी थी कई बार ज्यादा शब्द भी बोझ बन जाया करते हैं. शुभकामनाये !

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  4. गहरे कहीं हमारे ही भीतर धंसे अपराध बोध पर चौधिया रौशनी डालती कविता.क्या बात है!आपकी कलम यूँ ही उजाले लिखती रहे.

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  5. देह उन हत्याओं को
    ब्लाईंड बता कर चुप है
    जबकि दिल को है उम्मीद
    राज़ खोले जायेंगे
    फैसले बोले जायेंगे।
    behtar rachna ke liye badhhai.

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  6. अनूठी रचना मैम...
    अभी धीरे-धीरे कर तमाम पोस्ट पढ़ गया हूँ

    शब्दों से जो रंग उड़ेलती हैं आप, वो बड़े हसीन हैं..

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  7. aaina sach hi bolta hai......bahut badhiya likha hai.

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