दराज के अंधेरे कोने में जमी गर्द पर फूंक मारते ही अलसाये शब्दों ने जम्हाई लेते हुए पूछा वक्त क्या हुआ है ? यही कोई एक दोस्त को खोने जितना हुआ होगा, उदास मन बोला किंतु पुस्तक के पीछे से कोई पुराना चित्र भी दिखाई दे गया जो वक्त के कुछ और बीत जाने का आभास दे रहा था, यही पर कुछ पल असमय मर गए थे उनकी अस्थियाँ भी अब सीने से लगाने लायक नही रही तो झाडू से उनको बुहारा और एक अँधेरी सदी के मुहाने पर रखे कूड़ादान के भीतर उलट दिया। वे निशब्द अपनी नवीन यात्रा पर चल दिए हैं तो तस्वीर पर हाथ घुमाया जैसे कोई बनिया अपने उधार के खातों से किसी का प्यार वसूलना चाहता हो।
इस पहाड़ से बड़े हौसले वाले इन्सान ने जंगल में कंदराओं को, पानी में मूंगे की बस्तियों को, आसमान में फैले धूल के गुब्बार को, सूखे जंगल के अकेले पेड़ को, बुझी हुई नदी की पपडी से झांकते किसी जीव के खोल को यात्रा कर के खोजा और वहाँ शब्दों का कूड़ा करकट छोड़ आया, मेरे समय में भी घोर अकाल है एक ऐसी जगह का जहाँ शब्द न हों, जहाँ हो नितांत सूनापन, जहाँ कोई ये न पूछे की वक्त क्या हुआ है ?
पहली ही बार आपके ब्लाॅग पर आया। जिन चुनिंदा ब्लाॅग लेखको को मैं पसन्द कर रहा हूं, वो सब आपकी ही तरह है। आपके लेखन की गम्भीरता, सोन्दर्य और रोचकता के साथ एक श्रेष्ठता भी है। जो कही बहुत पढ़ने और समझने के बाद ही झलक पाती हैं। आपका प्रोफाइल कन्फूय्ज कर रहा है। सही प्रकार से दे तो अच्छा लगेगा। और ब्लाॅग के प्रोमोशन पर ध्यान दे। इतने अच्छे और शानदार लेखन के लिये एक बार फिर से मुबारकबाद।
ReplyDeleteइरशाद
'माँ' बिमार है केन्सर से जुज रही है। कुछ दिनों कि छुट्टी लेकर उसके पास गइ। कमज़ोर है 35 क्ग वज़न रह गया है किमोथेरेपी -रेडीएशन लेकर। शायद उसे पता है वो कुछ दिनों की महमान है। पर हमें नहिं बताती अपने दिल का हाल।
ReplyDeleteएक रात में उसके साथ सो गइ। सारी रात वो जागति रही। में आधी जगती- आधी सोती रही। मुज़े करवट बदलती देख उसने मुज़से पूछा "बेटा "वक्त क्या हुआ है"मानो कोइ एंतेज़ार में थी वो, या फ़िर किसी का डर था!!!!!!!!
बहुत खूब लिखा है ! दर्द को जैसे शब्दों के पंख लग गए हैं . कुछ भी हो जाए कुछ सवाल ज़िन्दगी भर हमारा पीछा करते हैं यादों की तरह .
ReplyDeleteजी शायद इसीलिए कभी मैंने दो लाइन लिखी थी -
ReplyDeleteदर्द आँखों में सिमट आया है ,
जाने कौन मुझे याद आया है .
आपके लेखन में गहराई है .....दिल कि हलचल को वक़्त क्या हुआ का रूप दिया और रजिया जी ने भी कमाल कर दिया
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
संजीदा लेखन-दर्द को बखूबी उकेरा है.
ReplyDeleteaap ke blog par pahali baar aana hua....! abhi ek ek kar saari post padhungi. pahale is post ke liye shabda dhoondh lu.n
ReplyDeleteaap ne jo likha, raziya ji ne jo kaha....! kai zakhma taza ho gaye.fir se pooNchha khud se Vaqta kya ho gaya hai aur aah nikali itana vaqta.....???? kaise guzar pai tum jabki lagta tha ki pal nahi guzar payeNge
aisa laga jaise kuch khayalo ko aazadi mili ho kuch shabd jadu se ubhare ho,bahut hi khubsurat lekh aur kalam bhi
ReplyDeleteवित्गेंस्ताइन ने भाषाओं के छद्म को पहले ही बता दिया था, आज उसी दर्शन पर एक शानदार पोस्ट इस जगह मिली. शब्दों की फटेहाल दुनिया कितनी लाचार हो सकती है ये आपने खूबसूरती से कुछ शब्दों के ज़रिये ही बताया. दानिश्वर लोग पहले ही लफ्फाजी नाम का शब्द दे गए है ताकि आने वाली पीढीयाँ लफ्फाजी से बचें.पर लगता है ये ज़माना ज्ञान के अधिनायकत्व का है, लोगअपने नहीं तो दूसरों के, खुद कह कर नहीं तो कोट करके एक नयी तरह का प्रभुत्व खडा करना चाहते है.
ReplyDeleteबेहद सुंदर.
अरसे बाद दराज खोला
ReplyDeleteकुछ धूल खाती चीजें मिली
टटोला तो कुछ मुड़े कागज भी मिले
जिन पर पहले कुछ लिखा
फिर लकीरें फेरी थीं
आंखों में वो अक्षर तैर आये
जिन पर लकीरें फेरी गई थी
वो अक्षर
खास अक्षर थे
आग को चूमना चाहते थे
जहर को पीना चाहते थे
आपका स्वागत है -
ReplyDeletewww.pradeepbali.blogspot.com
आँखों में पड़ी रेत..
ReplyDeleteऔर तुम्हारी याद में अब कोई फ़र्क़ नहीं रहा ....
क्या नहीं कह दिया आपने ....
आपकी रचनाएं आपके रचना-संसार की
गरिमा को प्रमाणित करने में सक्षम हैं ....
आपके ख्यालात आपकी शख्सियत की बलंदी की तर्जुमानी करते हैं ......
बधाई . . . . .
और......
जिंदगी की अनबूझ पहेलियाँ
हालात के अन-सुलझे-से सवालात
ख्वाहिशों का बिखरा सा संसार
बे-तरतीब से दिन-रात के लम्हात
जाने क्यूं ...
आते-जाते ...
मुझे आजमाते ....
मुझी से पूछ बैठते हैं ....
वक़्त क्या हुआ है . . . . .
---मुफलिस---
शब्दों से उमड़ते ये भाव सारे भाव दिल को छूते से...अपने से लगते...
ReplyDeleteitni kamaal ki lekhani chalti hai aapki ....... main to hatprabh rah gaya tha ke main kya padh raha hun dukh ko kitni sanjidagi se aapne ukera hai... kamaal ki lekhani,,,
ReplyDeletearsh
उम्र गुजरी घडियां गिनते हुए
ReplyDeleteन देखा साथ कितने हुए
जो चलने लगे वो मेरे सिरहाने से
मैंने पूछा "वक़्त क्या हुआ है".
यूँ तो मैं दर्द की सौदाई ठीक नहीं समझता. इतना जानता हूँ कि जो दर्द खुदा दे वो दर्द और जो दर्द खुद लें वह खुदा.
अरे जा. मैं तो आपकी आह में वाह कहना भूल ही गया. पहली बार आपका ब्लॉग देखा. सब कुछ सुन्दर.
ReplyDeleteबढ़ाई और शुभकामनायें.
वक्त क्या हुआ है...?
ReplyDeleteआईने में दिखा दिया हो जैसे !!
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद स्वीकारें....
ReplyDeletevo lamhe jinhen humne dil bhar ke jiya.vakt gujar jane ke baad ya kisi ke chale jane ke baad jab yaad aate hain to aatma paseej uthti hai,aur hum tan se apne aap ko vetan hota hua masoos karte hain. aise mein hum khud ko toota hua ,bikharta hua, lut ta hua mahsoos karte hai.shayad kisi ke prati hamaara pyar hota hai.is pyar mein gujare vakt ka haseen jeevan chupa hota hai.jisko humne kabhi jiya tha.chahat ka dard bahut tadpata hai.sundar lekh ke liye badhaai.fir milte hain
ReplyDelete"दर्द के लफ्ज़ अब वक़्त के गुजरते साए से ब्यान होते हैं ..."
ReplyDeleteकभी अचानक से कुछ ऐसा लिखा हुआ मिल जाता मिला जो लगता है की खुद ही बहुत सी बाते दिल की कहीं उगलवा ने ले ..आपके लिखे शब्दों ने वही काम किया है ..बहुत कुछ लिखने को कहने को मन उमड़ पड़ा है . आपका लिखा अच्छा लगता लिखते ..
Rajkumari ji aapka blog padha bahut achchha laga, aapki rachanovo me man ke gahare bavon ko sabdon me dhalane ki adbhut sakti hai...
ReplyDeleteRegards
sach waqt ka dard aapne bahut hi khamoshi se ukera hai............waqt kya hua hai........ .bas yahi pata nhi chalta
ReplyDeletebahut gahre bhav.bahut hi sundar abhivyakti.
madam
ReplyDeletei really enjoy it.
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