सूरज की रोशनी उसने पढ़ी नहीं, चाँदनी में जलता है क्या कभी जाना नहीं, उम्रदराज पेडों के तनों से झांकते चेहरों को समझा नहीं, मानता रहा कि सदा पैरों तले कुचले जाने वाली दूब को कोई शिकायत क्यों होनी चाहिए हमारे धर्म में किसी पवित्र अनुष्ठान को दूब के बिना संपन्न होते देखा है कहीं, कहता रहा ऑफिस में लगे एक्वेरियम में मछलियाँ निहारने से ह्रदय की धड़कनों को खोयी हुई लय मिल जाती है।
इलेकट्रोंस से बनती बिगड़ती तस्वीरों में ढूंढता है मृत संवेदनाएं एक निश्चित अन्तराल पर हँसता हुआ उडाता है मजाक आदमीयत की, उसने कभी शाम बेवजह बाहर नही बितायी, बेवजह वह बोलता भी नहीं है उसे अपने गिने चुने शब्दों को दोहराते रहने से कभी बोरियत नहीं होती, उसे कुछ नही होता उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ लेमिनेट कर दी गई हों जैसे, मेरी चुप्पी से ही फूटते हैं उसके बोल...
तुम मुझे समझती क्यों नही?
किसको?
मुझे...
मुझे किसको ?
आदित्य नारायण सिंह को
मैं एक लम्बी साँस लेती हुई ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ, इसे अपना नाम याद है अभी , ये किसी कोड में नही बदला है, इसके पूर्ण यन्त्र में परिवर्तित होने का समय अभी शेष है...
आशा का संचार करती सशक्त शब्दावलि।
ReplyDeleteनियमितरूप से लिखती रहें।
Rajkumari ji,
ReplyDelete॥आत्ममुग्धता ॥
दिल की बात कहने का हुनर जुबां को भी दे
इशारों के राज़ पढ़ने की आदत नहीं मुझे ॥
bahut achchha laga. badhai.
नए सन्दर्भों को रूपायित करती पोस्ट , बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteआत्ममुग्धता लाजवाब
रिश्तों की नई परिभाषा को सत्यापित करने का यह प्रयोग अच्छा है,
ReplyDeleteअगली बार कुछ नया सत्यापित कार्य मिलेगा इसी आशा के साथ,,,,,
नवनीत नीरव
mujhe aapki post ka intzar rahta hai ....aap dil mein jo pahunch jaye aisa likhti hain
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
aapne to manobhavon ko bahut gahre doobkar jana hai aur vyakt kiya hai.......bahut hi sundar likha hai.har shabd apne aap bol raha hai.
ReplyDeleteइसके पूर्ण यन्त्र में परिवर्तित होने का समय अभी शेष है...
ReplyDeleteइतनी गहरी बात इतने अल्प शब्दों में?
वाह!
लेमिनेट ज्ञानेन्द्रियाँ के बावजूद ....पहचान खोने का बोध ....
ReplyDeleteआपकी शब्द सरंचना गजब है ....